निति कहती है की जो राजा , अपनी प्रजा के दुःख दर्द से अनभिज्ञ, केवल राजनीतिक स्वार्थो से प्रेरित होकर सत्ता को बचाने के लिए और उसका सुख भोगने के लिए तत्पर रहता है, इतिहास उसे माफ़ नहीं करता और वर्तमान उसे ज्यादा दिन तक सत्ता सुख भोगने नहीं देता। लेकिन हाल के कुछ घटनाक्रम इस निति के एकदम विरुद्ध हो रहे हैं। भारतवर्ष के कुछ इलाके पिछले कुछ वर्षों से सूखे की एसी मार झेल रहे हैं की वहां का कृषि तंत्र लगभग ख़त्म हो चूका है। दुःख की बात ये है की हमरे कृषि मंत्री को इन किसानो से ज्यादा क्रिकेट की चिंता रहती है, और ये उनके लिए बड़े ही फक्र की बात है की उनके कार्यकाल में आई पी एल नयी बुलंदियां छू रहा है, भारत में क्रिकेट दिन दो गुनी और रात चौ गुनी तरक्की कर रहा है, सच में क्रिकेट में उनके योगदान का क्रिकेट के प्रेमी हमेशा याद रखेंगे!! काश मंत्री जी कुछ ऐसा करते जिस से इस मिटटी के पुत्र - किसान उन्हें याद करते . बुंदेलखंड, तेलंगना, विदर्भ में किसानो की हालत इतने दयनीय है की कभी वो जिंदा रहने के लिए अपने ही घर की औरतों को बेच रहें है तो कभी किसान जिंदा रहने का कोई कारण न रहने पर आत्महत्या जैसे कठोर कदम भी उठा रहें हैं।
पिछले दस दिनों में विदर्भ क्षेत्र के तीस किसान आत्महत्या कर चुके हैं। ध्यान रहे पिछले आम चुनाव से पहले हमारी इस तथाकथित 'किसान हितेषी' सर्कार ने लगभग ७०,००० करोड़ रुपये के क़र्ज़ माफ़ किये थे। क्या इस क़र्ज़ माफ़ी की मंशा सच में किसानो का भला करना था या किसानो की लाशों पर राजनतिक रोटियाँ सेक कर खुद का पेट भरना था। वास्तविक स्तिथि को समझे बिना ही निर्णय लेना और फिर उसकी सफलता का ढिंढोरा पीटना हमारे राजनतिक व्यवस्था का पुराना काम रहा है। किसानो के क़र्ज़ माफ़ी के साथ भी यही हुआ, जिन किसानो को इस तरह के क़र्ज़ की सख्त दरकार थी उनतक यह लाभ पहुँच ही नहीं और इसके कारण बहुत साफ़ और पुराने है अतः मै उन पर बहस नहीं करूँगा।
मै सिर्फ एक सवाल उठाना चाहता हूँ की आखिर कब तक इस तथाकथित 'कृषि प्रधान' देश में किसान आत्महत्या जैसे कठोर निर्णय लेते रहेंगे । आजादी के ६० बरस बीत जाने पर भी हम धरती के इन बेटों को साहूकारों के चंगुल से छुड़ा नहीं पाए हैं। हमरे वित्तीय संस्थान सिर्फ उनके लिए हैं जिनके पास पहले से लाखो- करोड़ों की सम्पति है, क़र्ज़ उगाही के नाम पर किसानो का शोषण करने वाले इन बैंकों का नंगा नाच हम कब तक एसे ही देखते रहेंगे । और आखिर कब तक इतने किसानो की हत्या की ज़िम्मेदार ये सर्कार मूक दर्शक बनकर बैठे रहेगी। कितने दुःख की बात है की जिस देश में 'उत्तम खेती, मध्यम व्यापार और नीच नौकरी' की कहावत हुआ करती आज उसी देश में किसान आत्महत्या कर रहें हैं।
ना जाने कितने और किसानो की बलि लेकर ये अंधी और बहरी सर्कार जागेगी और जमीनी हकीकत को जानकर उसे आधार बनाकर, सच में उनके लिए कोई रहत पकेज लाएगी । लेकिन भगत सिंह ने कहा था की अंधे और बहरे तंत्र को अपनी बात सुनाने के लिए धमाकों की जरुरत होती है।
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