Friday, August 15, 2014

आज़ादी……

आज़ादी……, आज नहीं, तू किसी और दिन आना,
हाँ फिर कभी हमें बेवकूफ समझ, बहलाना - फुसलाना।


माफ़ करना इस देश में तेरा प्रवेश वर्जित है,
क्यूंकि मेरी और मुझसे पहले की पीढ़ी,
अभी तक ग़ुलामी से ग्रसित है।

यहां शिक्षा में मैकाले आज तक भी हावी है,
बांटो और राज करो की वही पुरानी बीमारी है,
हर दिन लाखों अन्न के दाने को मोहताज हैं,
और काले अंग्रेज बने देश के सरताज हैं।

ऐसे में तुझे कुछ और इंतज़ार करना पड़ेगा,
कुछ बरस और जब आने वाली पीढ़ी के सर से,
ग़ुलामी का यह भारी पत्थर हटेगा।

तब तक गर्मी - जाड़ा - बरसात, तू वहीँ बाहर खड़ी रहना,
आज़ादी……, आज नहीं, तू किसी और दिन आना। 

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